“शुष्क क्षेत्रों में सतत खेती” पर राष्ट्रीय कार्यशाला सुफलाम 2022 आयोजित

29-30  अगस्त 2022, काजरी, जोधपुर

भाकृअनुप-केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, जोधपुर और भारतीय कृषि आर्थिक अनुसंधान केंद्र, नई दिल्ली द्वारा संयुक्त रूप से 29-30 अगस्त 2022 के दौरान "शुष्क क्षेत्रों में सतत खेती" पर एक राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन काजरी, जोधपुर में किया गया।

इस दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का उद्घाटन, मुख्य अतिथि, श्री गजेंद्र सिंह शेखावत, केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री और विशिष्ट अतिथि, श्री कैलाश चौधरी, केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री; विशेष अतिथि, परमहंस श्री रामप्रसाद जी महाराज; महंत श्री बड़ा रामद्वारा, सूरसागर एवं उदघाटन सत्र के अध्यक्ष, डॉ. सुरेश कुमार चौधरी, उप महानिदेशक (प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन), भाकृअनुप, नई दिल्ली की उपस्थिती में किया गया।

श्री शेखावत ने कहा कि खेती को लाभदायक बनाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों, किसानों एवं सभी हितधारकों को मिल कर मंथन करना चाहिए। उन्होंने कहा बढ़ती हुई जनसंख्या कि जरूरतों को ध्यान मे रखते हुए मरू क्षेत्र में जल संरक्षण के लिए काजरी एवं अन्य संस्थानो द्वारा विकसित तकनीकों को अपनाने पर जोर दिया।

इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि, श्री कैलाश चौधरी ने खेती के साथ पर्यावरण सुरक्षा का मुद्दा भी उठाया। उप महानिदेशक, डॉ चौधरी ने प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन को खेती, जलवायु एवं पर्यावरण के लिए घातक बताया। काजरी निदेशक, डॉ ओम प्रकाश यादव ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए शुष्क खेती मे आने वाली विभिन्न चुनौतियों एवं उनके समाधानों पर होने वाली चर्चा के बारे में अवगत कराया। श्री रामप्रसाद जी महाराज ने प्रकृति से छेड़-छाड़ करने से बचाव एवं गोवंश के संवर्धन पर अपने विचार रखे। अखिल भारतीय संगठन मंत्री, भारतीय किसान संघ, श्री दिनेश कुलकर्णी ने इस कार्यशाला की रूपरेखा पर विस्तार से प्रकाश डाला।

इस राष्ट्रीय कार्यशाला में विभिन्न विषयों पर 22 विषय विशेषज्ञों ने 5 तकनीकी सत्रों में अपने विचार प्रस्तुत किये। पाँच प्रमुख सत्र निम्न प्रकार हैं:

भारतीय शुष्क क्षेत्र में मरुस्थलीकरण, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन,

उत्पादकता बढ़ाने के लिए पशुधन प्रबंधन, भारतीय शुष्क क्षेत्र में फसल विविधीकरण की संभावनाएं, शुष्क क्षेत्रों की खाद्यान्न और बागवानी फसलों में एकीकृत कीट प्रबंधन, कम वर्षा वाले क्षेत्र में प्राकृतिक खेती और जैविक खेती: अवसर और संभावनाएं

प्रथम दिन, सांय कालीन सत्र में, काजरी प्रक्षेत्र भ्रमण के दौरान अंजीर की उन्नत खेती, उन्नत चारा फसल प्रक्षेत्र, सौर उपकरण कार्यशाला, कृषि वोल्टाइक खेती, जैविक खेती प्रक्षेत्र, कम लागत वाले पॉलीहाउस एवं जल वाष्पोत्सर्जन प्रबंधन तकनीकों के बारे में कृषको को अवगत कराया गया।

तकनीकी सत्रों में सभी वक्ताओं ने, प्राकृतिक संसाधनों के समुचित उपयोग एवं पर्यावरण संरक्षण को ध्यान मे रखते हुए खेती की विभिन्न उन्नत तकनीकों के बारे में बताया। इसी प्रकार रेत के टीलों के स्थिरीकरण, शुष्क फलों की उन्नत किस्मों, शुष्क क्षेत्रों में पर्याप्त संख्या में उन्नत नर्सरी की आवश्यकता पर बल दिया गया। वैकल्पिक समन्वित उत्पादन प्रणाली को उपयुक्त विकल्प, कम जोखिम व टिकाऊ उत्पादन की संकल्पना के साथ वर्तमान कृषि प्रणाली में समाहित करने पर भी बल दिया गया।

शुष्क क्षेत्रों में, प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली पशुओं की उत्तम देशी नस्लों, जिनमें कम गुणवत्ता वाले चारे को दुध उत्पादन में रूपांतरित करने की अद्भुत क्षमता होती हैं, जिसे अपनाने पर ज़ोर दिया गया। पशुओं के विषाणु जनित रोगों की रोकथाम के लिए टीकाकरण कार्यक्रम एवं पशु पालकों के लिए जागरूकता कार्यक्रम के आयोजन की सलाह दी गई। सिंचित क्षेत्रों में अधिक उत्पादन देने वाली फसलों यथा बाजरा नैपियर हाइब्रिड, गिन्नी घास व चारा चुकंदर इत्यादि को लगाने की सिफ़ारिश की गई। इस कार्यक्रम में बारानी क्षेत्रों में ‘धामन घास’ की काजरी-2178 किस्म को लगाने की सलाह दी गई।

इस प्रकार, जैविक खेती के महत्व को देखते हुए इसे खाद्य पदार्थों के जैविक उत्पादन के बजाय जैविक खाद्य प्रणाली के रूप में देखे जाने पर बल दिया गया। जैविक खेती में प्रभावी पौध संरक्षण हेतु जैव विविधता के लिए फसल विविधीकरण और खेत की सीमाओं पर विविध बारहमासी वनस्पतियों को लगाकर कीट एवं रोगो के प्रबंधन द्वारा सतत उत्पादन को बनाए रखा जा सकता हैं। शुष्क क्षेत्रों में किसानों की जलवायु, सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए प्राकृतिक खेती के लिए अवसरों और चुनौतियों पर चर्चा की गई। साथ ही समुचित पोषण, अच्छे स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण के लिए वातावरण अनुकूल खेती के प्रति वर्तमान समाज की मानसिकता में बदलाव तथा समय की मांग पर भी चर्चा की गई।

राष्ट्रीय कार्यशाला का समापन समारोह 30 सितम्बर, 2022 को मुख्य अतिथि, श्री हनुमान सिंह जी, क्षेत्रीय कार्यवाह, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने विशिष्ट अतिथि श्री दिनेश जी कुलकर्णी, अखिल भारतीय संगठन मंत्री, भारतीय किसान संघ एवं समापन सत्र के अध्यक्ष डॉ ओम प्रकाश यादव के निदेशक, काजरी, जोधपुर की उपस्थिती में सम्पन्न हुआ।

श्री सिंह जी ने अपने उद्बोधन में वर्तमान समय में जैविक एवं प्राकृतिक खेती कि प्रासंगिकता पर चर्चा की। उन्होंने प्राचीन वेदों में निहित कृषि के ज्ञान को आज के समय में कृषि कि वस्तुस्थिति पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होने प्राचीन ज्ञान एवं वर्तमान में कृषि के क्षेत्र में विकसित विभिन्न नवीन तकनीकियों के सामंजस्य पर विशेष ध्यान देने कि बात कही।

समारोह मे उपस्थित विशिष्ट अतिथि, श्री दिनेश जी कुलकर्णी जी ने पंच महाभूतों के समन्वय एवं भूमि सुपोषण पर चर्चा करते हुए दिशा मे निरंतर प्रयतनशील रहने पर ज़ोर दिया। यह पंच महा-भूत, पांच मूल तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु व आकाश) का एक समूह है, जिसमें भूमि, सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों में से एक है। यह न केवल भोजन, चारा और रेशा उत्पादन के लिए है बल्कि स्थानीय, क्षेत्रीय और वैश्विक पर्यावरणीय स्थिरता को बनाए रखने के लिए भी आवश्यक है। शुष्क क्षेत्रों में भूमि क्षरण का मौजूदा स्तर, जलवायु परिवर्तन और सीमित प्राकृतिक संसाधनों पर बढ़ता जैविक दबाव खेती और आजीविका सुरक्षा के लिए बड़ी चुनौती है। इसलिए शुष्क भूमि में खाद्य सुरक्षा और स्थिरता प्राप्त करना एक बड़ी चुनौती रही है। इस तरह से शुष्क क्षेत्र की आवश्यकताओं और समस्याओं को एक समान मंच पर शोधकर्ताओं, बुद्धिजीवियों, नीति निर्माताओं, अधिकारियों, किसानों, गैर सरकारी संगठनों और अन्य हितधारकों को शामिल करके गहन विचार-विमर्श के माध्यम से रेखांकित किया गया।

समारोह में काजरी संस्थान के निदेशक, डॉ यादव ने शुष्क क्षेत्रों मे कृषि, कृषि का भविष्य और कारगर रणनीतियों पर चर्चा की तथा इस दौरान उन्होने कहा कि यहाँ पर कृषि मुख्यत पशुपालन से जुड़ी हुई है तथा दोनों एक दूसरे के पूरक है। उन्होने कहा कि कृषि के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनो के संरक्षण एवं न्यायसंगत उपयोग पर विशेष ज़ोर देने कि आवश्यकता है। कार्यक्रम के अंत में आयोजन सचिव द्वारा सभी अतिथियों, प्रतिभागियों एवं आयोजनकर्ताओं के प्रति कार्यशाला के सफल आयोजन में सहयोग प्रदान करने के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया गया।

इस अवसर पर, श्री दल्लाराम बटेसर, प्रदेश अध्यक्ष, भारतीय किसान संघ; श्री सुहास मनोहर,प्रदेश मंत्री, भारतीय कृषि आर्थिक अनुसंधान केंद्र; काजरी संस्थान के विभागाध्यक्ष, वैज्ञानिक गण, विषय विशेषज्ञ वक्ता, राजस्थान के विभिन्न जिलों से आए कृषक भाई एवं बहने उपस्थित थी।

इस राष्ट्रीय कार्यशाला में 107 प्रतिभागियों ने सक्रिय रूप से भाग लिया।

(स्रोतः भाकृअनुप-केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, जोधपुर)